बारिशें लौट रही हैं
कोई हाथ थाम कर नहीं कह रहा - रुक जाओ।
जितनी आतुरता थी आने की
उतनी ही भेजने की भी है।
कोई कोस रहा है
किसी कमरे में,
"कितना नुक्सान कर दिया!"
बच्चों की हंसी नहीं रुक रही:
"पार लग गए ! अब कोई चिंता नहीं!
बारिश ने सब काम कर दिया!"
माई बाप खुश हैं
"सबके लिए,
कितना कुछ लाती हैं ,
जब भी आती हैं ।"
झुलसती गर्मी में
पींगें पड़वाती हैं
जब आती हैं ।
- बारिशें
घर की बुआ हों जैसे।
4 comments:
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २८ जून २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सुंदर
कमाल की कविता
बहुत सुंदर रचना
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