जैसे हम लोग ये मानते हैं कि AIDS या cancer जीवनघाती रोग है, terminal illness है, वैसे ही हमें ये भी स्वीकार करना चाहिए की अवसाद (depression) या और मानसिक रोग भी जीवन घाती (terminal illnesses) हैं.
इन रोगों को भी वही इज़्ज़त, या कम से कम वही acknowledgement तो मिलना चाहिए. लोगों को मालूम तो होना चाहिए की अगर किसी को अवसाद है, तो ये निश्चित नहीं की वो ठीक हो ही जाएगा.
जिस तरह हम कर्करोग या एड्स के मरीजों के अधिकारों में अपने जाने का समय चुनने के अधिकार की शिरकत करते हैं, यही शिरकत मानसिक रोग के रोगियों के लिए क्यों नहीं की जाती?
We speak about AIDS and cancer, and acknowledge the terminal nature of some of the cases of these illnesses. Why don't we accord the same seriousness and the same acknowledgement to mental illnesses?
We speak the right to die with dignity for patients who suffer from terminal illnesses of the body. Why don't we include that right among the rights of those affected by life long, terminal mental illnesses?
इन रोगों को भी वही इज़्ज़त, या कम से कम वही acknowledgement तो मिलना चाहिए. लोगों को मालूम तो होना चाहिए की अगर किसी को अवसाद है, तो ये निश्चित नहीं की वो ठीक हो ही जाएगा.
जिस तरह हम कर्करोग या एड्स के मरीजों के अधिकारों में अपने जाने का समय चुनने के अधिकार की शिरकत करते हैं, यही शिरकत मानसिक रोग के रोगियों के लिए क्यों नहीं की जाती?
We speak about AIDS and cancer, and acknowledge the terminal nature of some of the cases of these illnesses. Why don't we accord the same seriousness and the same acknowledgement to mental illnesses?
We speak the right to die with dignity for patients who suffer from terminal illnesses of the body. Why don't we include that right among the rights of those affected by life long, terminal mental illnesses?
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