पेङ जानता है,
कि वह क्या कर रहा है।
घास भी जानती है,
कि वह क्या कर रही है।
तो फिर,
व्याकरण के रचयिता,
सर्वाधिक विवेकशील प्रजाति,
क्यों नहीं जानते,
कि
अस्मि, असि, अस्ति
संपूर्ण क्रियायें हैं?
होना,
सम्पूर्णता है.
न होना भी
शाश्वत, अटूट यथार्थ।
**************
This version after Islaah from Arvind Joshi:
पेङ जानता है,
कि वह क्या कर रहा है।
घास भी जानती है,
कि वह क्या कर रही है।
तो फिर,
व्याकरण के रचयिता,
सर्वाधिक विवेकशील प्रजाति,
क्यों नहीं जानते,
कि
अस्मि, असि, अस्ति
संपूर्ण क्रियायें हैं?
होना,
काफी है.
कि वह क्या कर रहा है।
घास भी जानती है,
कि वह क्या कर रही है।
तो फिर,
व्याकरण के रचयिता,
सर्वाधिक विवेकशील प्रजाति,
क्यों नहीं जानते,
कि
अस्मि, असि, अस्ति
संपूर्ण क्रियायें हैं?
होना,
सम्पूर्णता है.
न होना भी
शाश्वत, अटूट यथार्थ।
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This version after Islaah from Arvind Joshi:
पेङ जानता है,
कि वह क्या कर रहा है।
घास भी जानती है,
कि वह क्या कर रही है।
तो फिर,
व्याकरण के रचयिता,
सर्वाधिक विवेकशील प्रजाति,
क्यों नहीं जानते,
कि
अस्मि, असि, अस्ति
संपूर्ण क्रियायें हैं?
होना,
काफी है.
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