Monday, December 17, 2018

Katranein/ कतरनें

नुन्नी, तू कविता लिखती थी न?

अब कहां लिखूंगी मां? घर, बच्चे, असबाब..

कविता, धमनियों के रक्त सी होती है। हममें ही बहती है।
जब तक तन की धमनियों में रक्त है बच्चे,
तब तक आत्मा में कविता बहती है।