जब से मुल्क से निकला हूँ,
और भी मुल्क का हुआ हूँ मैं
घर से ये कह कर निकला था
जाने किस ओर चला हूँ मैं.
धरती गोल है, ये बात,
परदेस में घर बना कर समझा हूँ मैं.
मैंने सोचा था बहुत दूर चला आया हूँ,
आँगन के नीम तले ही खड़ा हूँ मैं.
आँगन में, उसी जगह ही खड़ा हूँ मैं.
2 comments:
Beautiful
Thank you Onkar sir!
Post a Comment