हम जो बावरे से लोग हैं,
बस कविता ही में रहते हैं
कविता में आती हैं सांसें
कविता में मर जाते हैं .
सब्ज़ी, भाजी, रोज़गार
सब पचड़े पाल के रखे हैं
देह हमारी मुर्दा मुर्दा
हम जीवित बच जाते हैं .
एक स्वप्न के झूले पर
सौर मंडल के पार निकलते हैं
पिकनिक शब्दों संग मना कर
फिर दुनिया में आ जाते हैं.
पेड़ों के संग बैठक - अड्डा
लोगों में सकुचाते हैं
हम जो लोग हैं कविता वाले
बस, ऐसे ही बतियाते हैं।
बस कविता ही में रहते हैं
कविता में आती हैं सांसें
कविता में मर जाते हैं .
सब्ज़ी, भाजी, रोज़गार
सब पचड़े पाल के रखे हैं
देह हमारी मुर्दा मुर्दा
हम जीवित बच जाते हैं .
एक स्वप्न के झूले पर
सौर मंडल के पार निकलते हैं
पिकनिक शब्दों संग मना कर
फिर दुनिया में आ जाते हैं.
पेड़ों के संग बैठक - अड्डा
लोगों में सकुचाते हैं
हम जो लोग हैं कविता वाले
बस, ऐसे ही बतियाते हैं।
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