Friday, August 25, 2017

हम जो लोग हैं/ People like us

हम जो बावरे से लोग हैं,
बस कविता ही में रहते हैं 
कविता में आती हैं सांसें 
कविता में मर जाते हैं .


सब्ज़ी, भाजी, रोज़गार 
सब पचड़े पाल के रखे हैं 
देह हमारी मुर्दा मुर्दा 
हम जीवित बच जाते हैं .


एक स्वप्न के झूले पर 
सौर मंडल के पार निकलते हैं 
पिकनिक शब्दों संग मना कर 
फिर दुनिया में आ जाते हैं. 


पेड़ों के संग बैठक - अड्डा 
लोगों में सकुचाते हैं 
हम जो लोग हैं कविता वाले 
बस, ऐसे ही बतियाते हैं। 

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