Saturday, January 23, 2016

विरासत

अपनी विरासत को भूलने का मूल्य 
कोई नहीं चुका  सकता 
न इंसान 
न परिवार 
न गाँव 
न देश 
और न ही 
पूरी सभ्यता। 
 
उस भूलने के पल को 
वापिस नहीं मोड़ सकता कोई 
न पल,
न घंटा 
न दिन 
न साल 
न सदी 
और न ही 
स्वयं काल 
 
विरासत को भूलना 
होता है 
एक ही बार 
 

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