अपनी विरासत को भूलने का मूल्य
कोई नहीं चुका सकता
न इंसान
न परिवार
न गाँव
न देश
और न ही
पूरी सभ्यता।
उस भूलने के पल को
वापिस नहीं मोड़ सकता कोई
न पल,
न घंटा
न दिन
न साल
न सदी
और न ही
स्वयं काल
विरासत को भूलना
होता है
एक ही बार
कोई नहीं चुका सकता
न इंसान
न परिवार
न गाँव
न देश
और न ही
पूरी सभ्यता।
उस भूलने के पल को
वापिस नहीं मोड़ सकता कोई
न पल,
न घंटा
न दिन
न साल
न सदी
और न ही
स्वयं काल
विरासत को भूलना
होता है
एक ही बार
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