Monday, March 22, 2021

On the feedback of Indian parents

परीक्षाएँ बच्चों की चल रही थीं, और परेशानी माताओं की। 
हर परीक्षा से पहले, इस सवाल का जवाब, उस कार्यपत्र के जवाब, यानि कुल मिला कर मज़े मोहब्बत के आ रहे थे। 

हिन्दी की परीक्षा से एक दिन पहले एक मोहतरमा ने लिखा - ये पर्यायवाची याद कर के क्या फायदा जिन्हें ये बच्चे सारी उम्र इस्तेमाल नहीं करने वाले? 

मैंने २ बार उसे पढ़ा। फिर मुस्कुरा दी । जहालत अपने आप में बुरी चीज़ नहीं है, पर जहालत पर फक्र करने के लिए, आपको शेख चिल्ली होना पड़ता है। ये वो जवाब है, जो मैं उन देवी जी को देना चाहती थी, पर लिख यहाँ रही हूँ। 

देवीजी: 
२००० भाषाओं वाले देश में रह कर, आपने केवल एक भाषा सीखी - अंग्रेजी। जिसे भाषाओं की समृद्धि और सुंदरता का बोध ही नहीं है, उसे पर्यायवाची की विशेषता कैसे समझाई जा सकती है? हिन्दी में ७ शब्द केवल प्रेम के लिए हैं। उनके बीच का अंतर, हर शब्द की अपनी विशेषता, या तो भाषाविद समझ सकते हैं, या प्रेम करने वाले। आप में दोनों गुण नहीं हैं, आप कष्ट न उठाएँ। 
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विद्यालय में मैंने पूछा, कि बच्चों को महादेवी वर्मा और सुभद्रा क्यूँ नहीं पढ़ाई जातीं? "माँ, कह एक कहानी" के भोलेपन और माधुर्य से हमारे बच्चों को क्यूँ वंचित किया जा रहा है? 

अध्यापिका ने उत्तर दिया, "माता पिता कहते हैं कि वही पुरानी कविताएं बच्चों को क्यूँ पढ़ाई जाएँ? " 

अब जिन मा बाप ने ये मुफ़्त ज्ञान बांटा है, उनके बच्चों को अंग्रेजी में क्या पढ़ाया जा रहा है, (जिस पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है): 

Lochinvar: अपने ही विवाह से, दुल्हन को भगाने की कला। 

The Charge of the light Brigade: ८०० सैनिकों का मौत के मुंह में जाना क्यूंकि उनके नेताओं ने भूल की और उन्हें मरने के लिए भेज दिया। 

The Highwayman: एक डाकू की प्रेम कथा, जिसका अंत दोनों के भूत बन जाने में है। इस कविता में प्रेयसी को पेड़ पर सबके सामने सूली से लटकाने का प्रकरण भी है। 


और ऐसी अन्य कविताएँ जो अ -स्मरणीय हैं, अर्थात, जिनका स्मरण प्रयास करने पर भी नहीं होता। 

Robert Frost के बाद किसी ने जीवन में चयन के ऊहापोह और महत्व पर कोई कविता लिखी ही नहीं है। और इन माता पिता को, The Road Not taken, से नवीन कोई कविता चाहिए ही नहीं। The Road Less Travelled 1916 में प्रकाशित हुई थी. माँ , कह एक कहानी उस से कुछ अधिक पुरानी नहीं है, पर हमारे माता पिता को आती नहीं है। मुद्दा कविता के पुरातत्व का नहीं, अभिभावकों की अनभिज्ञता का है। 

किसी भी समाज में अविद्या विद्या के मानक नहीं निर्धारित कर सकती। 
No society can allow ignorance to determine the standards of knowledge. 




2 comments:

my space said...

So true..apni hee matrabhasha se itna bair kyu hain in sabko?

How do we know said...

My space :)
Heard that story of Shekh Chilli?
Har daal pe ullu baitha hai anjaam-e-gulistaan kya hoga :(