"अम्मा मैंने इक सपना देखा
बड़ा ही सुन्दर, बड़ा ही न्यारा!"
बेटा, वो तो है तेरा लेखा!
तभी लगे तू इतना प्यारा!
क्या देखा तुमने सपने में
चॉकलेट दी क्या तुम्हे किसी ने?
न अम्मा, उस से भी अच्छा
जिस से खुश होगा हर बच्चा!
क्या पूरा दिन खेल के आये
और घर आ कर नहीं नहाये?
ये सपना भी अच्छा होता,
पर इतनी देर मैं न सोता।
अच्छा चलो मेरे लाल मैं हारी
कह दो अब, तुम्हारी बारी
अम्मा, मेरे उस सपने में
रुई के जैसे सब बिस्तर थे
न तो बच्चों को उठना पड़ता
न ही स्कूल के पहरे लगे थे
पूरा दिन हम उधम मचाएं
शाम को भरपेट से खाएं
ऐसी मज़े की हो जो दुनिया
खिलखिलाएगी तब मुनिया
किन्तु मेरे होनहार जी
सबको इक दिन होना बड़ा है
बचपन जो गंवाये खेल के
उसका यौवन बहुत कड़ा है
बचपन में जो ताने खा ले,
उसे पड़ें न समय के कोड़े
तुम भी पड़ो यथार्थ के पाले,
और बड़े हो जाओ थोड़े.
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