यह : पिछले कुछ दिनों में, तुम पर कुछ अधिकार सा बोध होने लगा है.. जैसे मेरा तुम पर कुछ अधिकार हो..
वह: ये तो अच्छा है. अधिकार तो है ही, तुम्हारा मुझ पर.
यह: नहीं. क्यूंकि ये अधिकार एकतरफा सा है. अपने ऊपर तुम्हारा अधिकार मैं नहीं महसूस करती।
वह: तो.....?
यह: तुम पुरुष हो. समर्पण तुम्हारी प्रकृति में नहीं है. तुम केवल अधिपत्य जानते हो, समर्पण नहीं। एक तरफ़ा वर्चस्व समर्पण मांगता है. तुम स्वीकार नहीं कर पाओगे, इस दशा को.
वह: हाँ, ये तो है.
यह: तो फिर मैं अपना अधिकार बोध वापिस लेती हूँ. तुम पर मेरा कोई अधिकार नहीं।।
वह: हाँ, ये ठीक रहेगा।
यह: अच्छा।
वह: अच्छा।
2 comments:
Many won't get it. Absolutely brilliant... as a thought and the writing.
Thank you!
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