Wednesday, October 18, 2023

कहानी

आओ माँ 

मैं बतलाता हूँ 

तुमको एक कहानी 

दूर कहीं पर एक नदी थी 

और नदी में पानी। 


नदी का पानी झर झर झर झर 

नदी के पत्थर गोल 

नदी किनारे बच्चे खेलें 

पिट्ठू, किरकट, और बॉल 


एक दिन, जाने किधर से 

नदी में पहुंचा एक मगर 

पहले उसने मछलियाँ खाईं 

फिर तीर पर की नज़र 


छोटे छोटे पशु 

पहले उसकी पकड़ में आए 

पर इतने पर भी उसका 

पेट न भर पाए 


कैसे कहूँ माँ, उसने वहाँ 

क्या त्रासदी बनाई 

रात तो छोड़ो, दिन में भी 

कोई नदी ना जाए भाई! 


एक दिन, कुछ बच्चों ने 

एक तरकीब सुझाई 

गाँव वालों के मन को 

बहुत ये टिड़कम भाई 

 

एक लकड़ी का लंबा डंडा 

सिरे से दिखता मछली जैसा 

बीच में से चिरा हुआ 

स्प्रिंग बटन से ऐसे फैला 


डंडा पानी में बिठाकर 

गाँव वाले बैठे कुछ दूर 

रंग बिरंगी मछली देखे 

मगर, तो खाने को मजबूर! 


जयूं ही मगर ने मछली दबोची 

स्प्रिंग दबा, डंडा खुल गया 

मगर का मुंह खुला का खुला 

दर्द के मारे छट-पट हुआ 


बस, इसी की थी प्रतीक्षा 

टूट पड़ा फिर सारा गाँव 

मगर को सबने मार भगाया 

बेचारे के पड़े कितने घाव! 


गाँव में फिर से वही नदी थी, 

वही जल, वही पत्थर गोल 

लेकिन बच्चे समझ गए थे 

नदी किनारे का अब मोल! 


उन्होंने लड़ कर जीता था 

नदी का वह पाट 

खत्म हुई अब मेरी कहानी 

ताली बजाओ मिला कर हाथ! 

- 02 June 2018 

  



5 comments:

  1. बेहद सुंदर और संदेशात्मक कथा काव्य।
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २० अक्टूबर२०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. अत्यन्त सुन्दर प्रस्तुति

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