Thursday, June 27, 2024

Lautti baarishein

बारिशें लौट रही हैं 

कोई हाथ थाम कर नहीं कह रहा - रुक जाओ।  


जितनी आतुरता थी आने की 

उतनी ही भेजने की भी है। 


कोई कोस रहा है 

किसी कमरे में, 

"कितना नुक्सान कर दिया!" 


बच्चों की हंसी नहीं रुक रही: 

"पार लग गए ! अब कोई चिंता नहीं! 

बारिश ने सब काम कर दिया!"


माई बाप खुश हैं 

"सबके लिए, 

कितना कुछ लाती हैं , 

जब भी आती हैं ।"


झुलसती गर्मी में 

पींगें पड़वाती हैं  

जब आती हैं ।

  

- बारिशें 

घर की बुआ हों जैसे।  



4 comments:

  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
    सादर।
    ---
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २८ जून २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. बहुत सुंदर रचना

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