Tuesday, October 17, 2017

Mere Dukh ki koi dawa na karo by Sudarshan Fakir

मेरे दुःख की कोई दवा न करो 
मुझे खुद से अभी जुदा न करो 


नाखुदा को खुदा कहा है तो फिर 
डूब जाओ खुदा खुदा न करो 


ये सिखाया है दोस्ती ने हमें 
दोस्त बन कर कभी वफ़ा न करो 


आशिकी हो के बंदगी "फ़ाकिर"
बे दिली से तो इब्तदा न करो...



3 comments:

  1. My two cents...

    हुआ सामना और वो महफ़िल से उठ गए
    और शर्त भी यह कि कोई सवाल ना करो

    मौका आख़िरी सही उनसे रुख़सत लेने का
    सिल जाएँ ये लब, ऐसी भी इंतेहा न करो

    मेरे साक़ी की नज़र मुझ पर ना सही
    मगर नीयत पे उसकी तुम शुबा ना करो

    वस्ल का दिन मुक़र्रर ना हुआ तो क्या
    क़यामत की फिर भी तुम दुआ ना करो

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  2. Hi HT: I have recently rediscovered Sudarshan Fakir, but perhaps putting his work here will give us a new perspective. I loved each sher in this one, but the first one the best.

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