नहीं, कहीं कुछ , गलती हुई है
ज़रूर
तुम
ये जगह
ये रहगुज़र
ये कुछ भी
मेरे रास्ते में नहीं पड़ने थे
नक़्शे पर कहीं
निशाँ नहीं है इस सब का
और फिर भी
आज
तुम, सजीव , मेरे सामने हो..
ये जगह भी
असली लगती है
और रहगुज़र में से
अभी लुट कर निकला हूँ मैं
नहीं, कहीं कुछ , गलती हुई है
ज़रूर
इस रास्ते पर
होना नहीं चाहिए था मुझे
या शायद
होना ही नहीं
चाहिए था मुझे
रास्ता गलत नहीं है
गलत है
मेरा होना
और मेरे कारण
इस नक़्शे का होना
ज़रूर
तुम
ये जगह
ये रहगुज़र
ये कुछ भी
मेरे रास्ते में नहीं पड़ने थे
नक़्शे पर कहीं
निशाँ नहीं है इस सब का
और फिर भी
आज
तुम, सजीव , मेरे सामने हो..
ये जगह भी
असली लगती है
और रहगुज़र में से
अभी लुट कर निकला हूँ मैं
नहीं, कहीं कुछ , गलती हुई है
ज़रूर
इस रास्ते पर
होना नहीं चाहिए था मुझे
या शायद
होना ही नहीं
चाहिए था मुझे
रास्ता गलत नहीं है
गलत है
मेरा होना
और मेरे कारण
इस नक़्शे का होना
simply brilliant. you should share more of your poems with us.
ReplyDeleteLovely!
ReplyDeleteLet me counter it by quoting Robert Frost-
Two roads diverged in a wood, and I
I took the one less traveled by
And that has made all the difference!
Good one.. simple and effective.
ReplyDeleteI wish you had continued on and added more to it...
...felt a bit of contradiction in final lines...
ReplyDeletebut anyway if there is something...it might be the time..to redraw the maps...for you could be the only lucky one to get lost...to know all the roads...
..you are always a blessing..