Saturday, June 13, 2015

मनचाहा ही रिश्ता - इमरोज़


Was pleasantly surprised to see a book of poetry by Imroz, who is more of a painter.. and it felt as if Amrita was speaking through him.. funny what years of companionship can do to a person..

Presenting.. excerpts..

पेड़ पंछी पैदा नहीं करते
पर पंछियों को घर देते हैं

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ये रब का  तजुर्बा ही हो सकता है करामात नहीं
की बच्चा औरत का जिस्म पैदा करे औरत नही.
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ज़रूरतें न होती
तो रब की भी ज़रुरत न होती
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पैर खोलो  तो धरती अपनी है
पंख खोलो तो आसमान
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प्यार अपनी किस्मत आप लिखता है
और सब की किस्मत कोई और लिखता है
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एक मनचाही ज़िन्दगी ही
ज़िन्दगी का आसमान है
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ज़िन्दगी तस्वीर भी है
और तकदीर भी
मनचाहे रंगों से बन जाए
तो तस्वीर
अनचाहे रंगों से बने
तो तकदीर
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न तरस करो
न रहम
दोनों में आदर नहीं
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पाप जिस्म नहीं करता
सोच करती है
गंगा जिस्म साफ़ करती है
सोच नहीं
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जब माँ नहीं होती
किसी रिश्ते में घर नहीं होता
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प्यार समझ में नहीं आता
पर प्यार समझ लेता है
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बिखरने के लिए
लोग ही लोग
पर एक होने के लिए
एक भी मुश्किल
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रिश्ते बनना और बनाना एक कला है
कानून मौका देता है रिश्ता नहीं
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माँ बोली बगैर पढ़े ही आ जाती है…
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खून के रिश्ते रिश्ते लगते हैं
पर हो नहीं पाते
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अच्छी सोच से अच्छा
कोई कानून नहीं
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4 comments:

Lucifer said...

love this one

ज़रूरतें न होती
तो रब की भी ज़रुरत न होती

suddenly makes u think so much

How do we know said...

yeah...

Anonymous said...

Is this Amrita imroz ka Imroz? I have this book but there is no reference about author

How do we know said...

Hi Anon: Yes, it is Amrita Imroz ka Imroz.