Sunday, April 24, 2011

पतंगबाजी

बीन्धें कुछ पल,
चोरी करें पतंगे
और उड़ायें दूर तक
औरों के आकाश में
कुछ औरों की पतंगें

अपने ख्याल
न इतने आज़ाद हैं
न इतने हलके

पतंगें बनाने का काम
कवी ही सम्हालते हैं हमारे गाँव में
रोटी कमाने का काम
हमारा है।
और पतंगबाजी का शौक भी।

लोगों के मन के आकाशपर
कवियों की बनायीं पतंगें
उड़ाते हैं हम
आपस में
करते हैं पतंगबाजी भी
जुमलों के मांजे से

कवी भी
अपनी ही पतंगें उड़ाते हैं
अपने ही मन के आकाश में
करती हैं पतंगबाजी
उनकी ही उलझी सोचें
चोट खाए जज़्बात
उनके ही सीने से चिपटकर ॥

बस एक ही बात है
जो समझ नहीं आती
उनकी पतंगें
एहसास के मांजे पर तैरती
इतनी दूर कैसे जाती हैं?

No comments: